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सोमवार, जनवरी 23, 2012

sarkar so rahi hai

भारत भर में विस्फोटो का शोर सुनाई देता है,हिजबुल के लश्कर लारो का शोर सुनाई देता है
मले समीरा मौसम  आदम खोर दिखाई देता है,लाल किले का भाषण भी कमजोर दिखाई देता है

घोर तिमिर में शब्द ज्योति का जलना बहुत जरुरी हैं,इन कोहराम भरी रातों का ढलना बहुत जरुरी है 
मैं  युग बोधी  कलमकार का धर्म नहीं बिकने दूंगा,चाहे मेरा सर कट जाये कलम नहीं बिकने दूंगा
इसीलिए केवल  अंगार लिए फिरता हु गीतों में,आंसूं से भीगा अखबार लिए फिरता हु गीतों में
 ये जो भी हत्यारों से समझौतों की लाचारी है,ये दरबारी कायरता है अपराधिक गद्दारी है
ये बाघों का शरण पत्र है भेड़ सियारों के आगे,वटवृक्षों का शीश नमन है खरपतवारों के आगे 
हमने डाकू  तस्कर आत्मसमर्पण  करते देखे थे,सत्ता के आगे बंदूके अर्पण करते देखे थे 
लेकिन ये तो सिंघासन का आत्म समर्पण देख लिया,अपने अवतारों के बौने कद का दर्पण देख लिया 
ये हंसो के सरोवरों में गिद्धों को आमंत्रण है,गौरैया के बच्चो का बाजों के नाम निमंत्रण है
ये गीतों का मेघदूत है तूफानों के आँगन में,रजनीगंधा की दस्तक है नागफनी के दामन में
ये गाँधी गौतम के घर  में हिंसा की मेहमानी है,ये कोयल के राजमहल में कौवे की अगवानी है
जैसे कोई ताल तल्लिया गंगा जमुना को डांटे,चार तमंचे मार रहे है एटम के मुह पे चांटे
जैसे एक समुंदर चुल्लू भर जल गागर से मांगे,ऐसे घुटने टेक रहा है सूरज जुगनू के आगे
ये कैसा परिवर्तन आया है अपने आचरणों में,संसद का सम्मान परा है चरमपंथ के चरणों में
किसका खून नहीं खुलेगा सुन  पढके आखबारो में,सिंघो की पेशी करवा दी चूहों के दरबारों में

जो भी अफज़ल की फांसी को रुकवाने में शामिल है,वे सब फांसी के फंदे पे टंग जाने के काबिल है
इन सब षड्यंत्रों का मिटना बहुत जरुरी है,पहले घर के गद्दारों का मिटना बहुत जरुरी है
हर संकट का हल मत पूछो आसमान के तारों से,सूरज किरणे कब लेता है नभ के चाँद सितारों से
पांचाली के चीरहरण पे जो चुप पाए जाते हैं,इतिहासों  के पन्नो पे वो सब कायर कहलाते है
बंदूकों की गोली का उत्तर सदभाव नहीं होता,हत्यारों के लिए अहिंसा का प्रस्ताव नहीं होता
कोई विषधर कभी शांति के बिज नहीं बो सकता है,और भेड़िया  शाकाहारी कभी  नहीं हो सकता है
ये युद्धों का परम सत्य है  पूरा जगत  जानता है,लोहा और लहू जब लड़ते  है तब लहू हारता है 
जो खुनी दंशो को सहने वाला राजवंश होगा ,या तो महा मुर्ख होगा या कोई परमहंस होगा 
गांधीजी के सपनो का ये कैसा देश बना डाला,चाकू चोरी चीरहरण वाला परिवेश  बना डाला
हर चौराहे से आती है आवाज़े संत्राशो की,पूरा देश नज़र आता है मंडी ताज़ा लाशों की
मदिरा की बदबू आती है संसद की दीवारों से,
संसद के सीने पे खुनी दाग दिखाई देता है, पूरा भारत  जलिया वाला बाग़ दिखाई देता है



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