आज पुरे दिन भर लोकपाल बिल की डुग डुगी बजा के,हमारे देश के तथाकथित निष्पक्ष पत्रकार बंधुओं ने ये सिद्ध कर दिया की कैसे ये मूलत: कमजोर बिल भी कितना कारगर है भ्रष्टाचार मिटाने में,आज सभी पत्रकारों ने ये सत्यापित कर दिया की सबसे ज्यादा भ्रष्ट की कतार में हम भी शामिल है,कैसे एक षड्यंत्र के द्वारा जनता को ये विश्वास दिलाने की कोशिश करते रहे ये पत्रकार की अन्ना कितने कमजोर है और जनता का उनको कोई समर्थन नहीं है|आज पत्रकारों की सरकार की मिलीभगत का पता चला और एक कहावत याद आ गया "चोर चोर मौसेरे भाई"| सब पत्रकार बंधू पूरी तरह से सरकारी रंग में नज़र आये और सिद्ध करते रहे दिन भर की अन्ना कोई महान इन्सान नहीं है बल्कि एक राजनैतिक दल की तरह काम कर रहे है,अफ़सोस ये गलत जबाब है सरकारी चमचो अन्ना के साथ कोई भ्रष्टाचार नहीं कर सकता वो सिर्फ ये लड़ाई आम जनता के लिए लड़ रहे है,मगर सरकारी चमचो को,जयचंद के नातियों को ये बात नहीं दिखती क्योंकि सारे पत्रकार बिक चुके हैं भ्रष्ट सरकार के हाथों में| ये हमेशा स्वतंत्र पत्रकारिता की बात करते है मगर सब के सब बिक चुके आज तो लगता है की सबसे पहले लोकपाल के दायरे में इन्ही को लाना चाहिए,नहीं तो चुनाव के समय आचार सहिंता के बावजूद ये सभी समाचार पत्र और चैनल इनका प्रचार करेंगे और चुनाव आयोग कुछ नहीं कर पायेगा|भारत में आज पत्रकारिता का नैतिक पतन हो गया है वो अब सरकारी प्रवक्ता की तरह काम करते है,इतना मूल्य गिर जायेगा पत्रकारिता कभी सोचा न था,अब वक़्त है इन सभी तथाकथित पत्रकारी संस्थाओं को अलविदा कहने का ताकि इनका भी एक सबक मिले|अंत में एक बात और कह दे की सभी से मेरा तात्पर्य हर एक पत्रकार से नहीं था हाँ अभी भी कुछ पत्रकार है जो निष्पक्ष है और शायद उन्ही कुछ चुने हुए पत्रकारों की वजह से ये पत्रकारिता का झंडा हिला हुआ सही मगर थोड़ा बुलंद हैं|एक प्रश्न उठता तो हैं भारत में पत्रकारिता क्या वेश्या हो गयी हैं जो पैसों पे बिकती
हैं| एक शेर कहने का मन करता है ये सरकारी वेश्या है मुजरा करती है,थोड़ा ज़ाम के साथ मजा लीजिये|तो अब क्या कहेंगे भारत में पत्रकारिता सशक्त है या कमज़ोर| अब तो सिर्फ भरोसा लोकतंत्र के एक स्तम्भ पे है वो है हमारी न्यायिक व्यस्था में है माना की वहां भी भ्रष्टाचार हैं मगर जितना बाकि तीन लोकतंत्र के स्तंभों में है उससे बहुत कम हैं| मुझे लगता है भारत में पत्रकारिता एक सरकारी अंग है जो सिर्फ सरकारी डुग डुगी बजाने के लिए बनी है|भारत में पत्रकारिता निष्पक्ष हैं|जोर से हँसिये क्योंकि ये है सहस्त्राब्दी का सबसे बड़ा चुटकुला है|
आपका नागरिक मित्र
पंकज मणि
हैं| एक शेर कहने का मन करता है ये सरकारी वेश्या है मुजरा करती है,थोड़ा ज़ाम के साथ मजा लीजिये|तो अब क्या कहेंगे भारत में पत्रकारिता सशक्त है या कमज़ोर| अब तो सिर्फ भरोसा लोकतंत्र के एक स्तम्भ पे है वो है हमारी न्यायिक व्यस्था में है माना की वहां भी भ्रष्टाचार हैं मगर जितना बाकि तीन लोकतंत्र के स्तंभों में है उससे बहुत कम हैं| मुझे लगता है भारत में पत्रकारिता एक सरकारी अंग है जो सिर्फ सरकारी डुग डुगी बजाने के लिए बनी है|भारत में पत्रकारिता निष्पक्ष हैं|जोर से हँसिये क्योंकि ये है सहस्त्राब्दी का सबसे बड़ा चुटकुला है|
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पंकज मणि