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शुक्रवार, दिसंबर 30, 2011

कुछ दिल से

अभी जौंके-सफ़र का मज़ा आने दे,मनाज़िल दो कदम और चला जा

ये रात अँधेरे की चादर ओड़ के सो गयी,एक सुबह की तमन्ना  मुझे सोने नहीं देती

हसरते की बस कुछ और जी ले ,अब  खुल के जीने नहीं देती 

जी इस तरह की खुद को मोहतरम कर दे,शराफतो पे किसी का एकअख्तियार नहीं होता

पंकज वो जो चला गया तो अफ़सोस मत कर,किसी एक  के रुक जाने से वक़्त नहीं रुका करता

हरेक लफ्ज़ है मेरे जेहन का आइना,उनको अब भी शौक है इम्तेहान का

तेरी हर एक कोशिश तुझे इंसा बनाएगी,मुक़द्दर को भी तेरा इंतज़ार रहेगा

मुसाफ़िर-ए-तनहा को जौंके-सफ़र का अंदाज़ा है,उसे अब किसी हमजबां की जरुरत नहीं

जलजलों का ये दोस्त खौफ  मत रख,आंधियों ने लड़ना सिखा दिया मुझे

निगाहबानों ने दामन मैला कर लिया,शर्त लगी है कहीं खंडहर बनाने की

बड़ी हवेलियों में जो उनकी  तरबियत न होती,तो दिल में उनके मस्लहत न  होती

गमनसीबों पे तंज कर रहे हो मियां,गर्दिशे-शाम कभी ढूढेगी तुम्हारा भी पता

गुरुवार, दिसंबर 29, 2011

ये रात लम्बी हो गयी है या फिर इस रात की सुबह नही

कैसे कहे की अब सूरज डूब चूका है,रौशनी नहीं आएगी कभी
आज़ादी की आत्महत्या के ज़िम्मेदार कौन,सन्नाटा पसरा,मौन है सभी
इस अँधेरी रात में धुंध घने कोहरे में अब सूरत भी तो दिखती नहीं
कैसे मान  लू मैं हृदय में जो हो रहा है यहाँ, सब हो रहा वो सही
 ये रात लम्बी हो गयी है या फिर इस रात की सुबह नही

लोकतंत्र दिल बहलाने का ख्याल है या फिर है आधा अधुरा कोई ख्वाब
जो हुआ था आज यहाँ था किसी गंभीर प्रश्न का एक भद्दा जवाब
या फिर कर रहा है दूर बैठा कोई इस टूटे हुए दिल से एक गंभीर मजाक
कैसे मान  लू मैं हृदय में जो हो रहा है यहाँ, सब हो रहा वो सही
 ये रात लम्बी हो गयी है या फिर इस रात की सुबह नही

अब तो ऐतबार  भी टुटा हैं ,  सपना दूर बैठा कहीं मुस्कुरा रहा है
तमाम जुट रहे है लोग मगर भीड़ में खुद को तनहा पा रहा है
साथ मेरे है सभी पर क्यों है,ऐसा कोई अपना छोड़ के जा रहा है

धुंधली रौशनी दिखाई देती तो है ,कोई है उधर  मशालों  को जलाएं हुए
जिन्दा सा लगता तो है,वो जो है हिन्दुस्तान को सीने में बसाये हुए
जिनसे मुखातिब है जानता ही नहीं सब पुतले है मिटटी के बनाये हुए

इतिहास पूछेगा कभी हम सबसे क्यों लुटते हुए देश को बचा न सके,
अपनी माँ की ममता पे शरीर का कणमात्र  खून बहा न सके
क्यों सोते हुओं को जगा न सके,भारत को भारत बना न सके
कैसे मान  लू मैं हृदय में जो हो रहा है यहाँ, सब हो रहा वो सही
 ये रात लम्बी हो गयी है या फिर इस रात की सुबह नही

जो सो रहे है गहरी नींद में  जाग जाएँ,भरो हुंकार जोर से ताकि ये राक्षस भाग जाये
कल फिर कोई इस देश का सौदा कर न सके,भूखे पेट फिर कल कोई मर न सके

 
                                                    
                                                                                                             आपका नागरिक मित्र
                                                                                                                       पंकज मणि

सोमवार, दिसंबर 26, 2011

क्या भारत में पत्रकारिता निष्पक्ष हैं?

आज पुरे दिन भर लोकपाल बिल की डुग डुगी बजा के,हमारे देश के तथाकथित निष्पक्ष पत्रकार बंधुओं ने ये सिद्ध कर दिया की कैसे ये मूलत: कमजोर बिल भी कितना कारगर है भ्रष्टाचार मिटाने में,आज सभी पत्रकारों ने ये सत्यापित कर दिया की सबसे ज्यादा भ्रष्ट की कतार में हम भी शामिल है,कैसे एक षड्यंत्र के द्वारा जनता को ये विश्वास दिलाने की कोशिश करते रहे ये पत्रकार की अन्ना कितने कमजोर है और जनता का उनको कोई समर्थन नहीं है|आज पत्रकारों की सरकार की मिलीभगत  का पता चला और एक कहावत याद आ गया "चोर चोर मौसेरे भाई"| सब पत्रकार बंधू पूरी तरह से सरकारी रंग में नज़र आये और सिद्ध करते रहे दिन भर की अन्ना कोई महान इन्सान नहीं है बल्कि एक राजनैतिक दल की तरह काम कर रहे है,अफ़सोस ये गलत जबाब है सरकारी चमचो अन्ना के साथ कोई भ्रष्टाचार नहीं कर सकता वो सिर्फ ये लड़ाई आम जनता के लिए लड़ रहे है,मगर सरकारी चमचो को,जयचंद के नातियों को ये बात नहीं दिखती क्योंकि सारे पत्रकार बिक चुके हैं भ्रष्ट सरकार के हाथों में| ये हमेशा स्वतंत्र पत्रकारिता की बात करते है मगर सब के सब बिक चुके आज तो लगता है की सबसे पहले लोकपाल के दायरे में इन्ही को लाना चाहिए,नहीं तो चुनाव के समय आचार सहिंता के बावजूद ये सभी समाचार पत्र और चैनल इनका प्रचार करेंगे और चुनाव आयोग कुछ नहीं कर पायेगा|भारत में आज पत्रकारिता का नैतिक पतन हो गया है वो अब सरकारी प्रवक्ता की तरह काम करते है,इतना मूल्य गिर जायेगा पत्रकारिता कभी सोचा न था,अब वक़्त है इन सभी तथाकथित पत्रकारी संस्थाओं को अलविदा कहने का ताकि इनका भी एक सबक मिले|अंत में एक बात और कह दे की सभी से मेरा तात्पर्य हर एक पत्रकार से नहीं था हाँ अभी भी कुछ पत्रकार है जो निष्पक्ष है और शायद उन्ही कुछ चुने हुए पत्रकारों की वजह से ये पत्रकारिता का झंडा हिला हुआ सही मगर थोड़ा बुलंद हैं|एक प्रश्न उठता तो हैं भारत में पत्रकारिता क्या वेश्या हो गयी हैं जो पैसों पे  बिकती
हैं| एक शेर कहने का मन करता है ये सरकारी वेश्या है मुजरा करती है,थोड़ा ज़ाम के साथ मजा लीजिये|तो अब क्या कहेंगे भारत में पत्रकारिता सशक्त है या कमज़ोर| अब तो सिर्फ भरोसा लोकतंत्र के एक स्तम्भ पे है वो है हमारी न्यायिक व्यस्था में है माना की वहां भी भ्रष्टाचार हैं मगर जितना बाकि तीन लोकतंत्र के स्तंभों में है उससे बहुत कम हैं| मुझे लगता है भारत में पत्रकारिता एक सरकारी अंग है जो सिर्फ सरकारी डुग डुगी बजाने के लिए बनी है|भारत में पत्रकारिता निष्पक्ष हैं|जोर से  हँसिये क्योंकि  ये है सहस्त्राब्दी का सबसे बड़ा चुटकुला है|


                                                                                                                आपका नागरिक मित्र
                                                                                                                          पंकज मणि

शनिवार, दिसंबर 24, 2011

एक और दिन बीत गया राह तकते-तकते

[{(ये कविता मैंने अपने ख़ूबसूरत संघर्षशील दिनों में लिखी  थी,तब मैं यूँ ही तुक बंदी करता रहता था,मेरी उम्र तब २५ साल की थी|]})


फिर एक दिन कट गया तेरी राह तकते-तकते,
ये रात भी कटेगी तेरी राह तकते-तकते
 
बड़ी अजीब सी लगती है,जिंदगी ये मौला,
कुछ सूझता नहीं,बस दिल के अरमान है जलते,
हैं ख़्वाब उस उजाले के जहाँ ढेरों रौशनी हो,
उम्र न कट जाये अंधेरों को तकते-तकते

कहाँ जाएँ किधर जाएँ,कोई राह अब न सूझती,
ये जिंदगी तो बस,एक दर्द सी है लगती,
आता नहीं नज़र कुछ,आँखों को खोलकर भी,
फ़ना हो न जाएँ हम,तारों को तकते-तकते

बड़ी उमंगें थी,ढेरों चाहते थी,
क्या दिन थे मौला,जब तेरी रहमते थी,
सब मिलते थे मुझसे सिने को मिला के,
रुक जाते है अब कुछ हाथ बढ़ते-बढ़ते

अब नहीं दिखती मुझे कोई भी मंज़िल दिखाई,
इस साल नहीं मैंने दीवाली मनाई,
अपनों ने किया है मुझसे अब किनारा,
कहीं देर न हो जाये,मौला तेरी राह तकते-तकते


फिर एक दिन कट गया तेरी राह तकते-तकते,
ये रात भी कटेगी तेरी राह तकते-तकते


                                                                                                                       आपका नागरिक मित्र
                                                                                                                                  पंकज मणि

शुक्रवार, दिसंबर 23, 2011

जो कुछ सिखा जो कुछ पाया

  जब भी हम गिरे,तो ये ख्याल रहे
  जल्द ही उठना भागना है,
  निकल जायेंगे सब आगे भागते भागते,
  रुकता नहीं कोई यहाँ  किसी के वास्ते

   मत बैठो यूँही खाली कभी,कुछ करो
  खुश रहो रखो सबको खुश,
 खुद के लिए नहीं तो कम से कम,
 कुछ उनके लिए भी जो कभी हँसे नहीं

कुछ करने के लिए कोई डिग्री नहीं होती
शुरू करने की तो बस जरुरत है होती

सोचो उत्तम करो उत्क्रीस्ट  कर्म सदा,
ताकि जीवन में न रहे कोई भ्रम ,
मैं और तुम मिलके चलो बने हम,
कुछ नया करने में क्यों करते हो शर्म

करो वही जो दिल मैं है बस बसता,
ताकि इन्तजार करे हर एक रस्ता

रखो सदा ये बात याद,
सच्ची ख़ुशी खरीदी जा सकती नहीं,
और सच्ची मुस्कराहट ला सकती नहीं,
करो तो एक बार दिल से कभी सच्ची मदद,
खुश रहेगा दिल और तन मन हर वक़्त

सच्ची ख़ुशी को समझौतों का सहारा नहीं होता,
झूठी खुशियों से दोस्त जीवन भर गुजरा नहीं होता

बोलो तो जरुर मगर याद इतना रखना,
किसी का दिल तो दुखे मगर टूटे नहीं,
बात वही कहो जो हो पूरी पूरी सही,
बेकार बोलने से अच्छा मौन रहो,
मन ही मन खुद से सब कुछ कहो

झूठ बोलने से भी तो सब कुछ प्यारा नहीं होता,
क्षणिक खुशियों से भी जीवन भर का सहारा नहीं होता

मत करो कोई काम कभी अधुरा आधा,
जीवन में रखो वसूल बस एक सीधा साधा
करो खुद से सदा एक वादा,
हँसो तो खुल के हँसो,सुन्दर और स्वस्थ बनो
हँसते रहो सदा हँसाते रहो,दिल में बसों सबके
खिलते रहो और बस खिलखिलाते रहो

ईश्वर देता साथ उसी जो हो दिल का सच्चा,
दिल हो वैसा साफ़ जैसे चार साल का बच्चा

जो कुछ सिखा जो कुछ पाया,
शायद सब कुछ लिख न पाया,
पर जो भी कुछ लिखा है मैंने,
वो दस साल से खुद पे आजमाया,


                                                                                               आपका नागरिक मित्र
                                                                                                         पंकज मणि

बुधवार, दिसंबर 21, 2011

साईं नाम सुमिरन करो लगातार

साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं
साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं  साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं नाम का सुमिरन करो लगातार मिल जायेगा हर दर्द से आराम

सोमवार, दिसंबर 12, 2011

जनता करो अभी थोड़ा वेट

मंत्रीजी एक कन्या के साथ,आज अपनी रंगी शाम कर रहे है,
जनता करो अभी थोड़ा वेट,मंत्रीजी आराम कर रहे है

गज़ब का जमाना गज़ब का लोकतंत्र,मंत्री नशे में,जनता है त्रस्त,
मर रहा है नाथू,गुड़िया भी है भूखी,ये है नया  सरकारी बंदोबस्त
मंत्री जी आजकल ढेर सारी   हितकारी नीतियों पे चर्चा कर रहे है,
जनता करो अभी थोड़ा वेट,मंत्रीजी गिरगिट के गुण सिख रहे है

सड़को पे सोते भारत का नज़ारा दम तोड़ते, मरते भारत का नज़ारा,
सायरन बजा देखो मंत्री जी आये,सड़को पे आया  जनता का प्यारा
मंत्रीजी देखो कई बन्दुक धारियों के साथ पैदल चल रहे है,
जनता करो अभी थोड़ा वेट ,मंत्रीजी दो चार क़त्ल कर रहे है

कैसा है ये लोकतंत्र और भैया काहे का प्रजातंत्र है,
कोई किताबी बातें है ये या दिल बहलाने का तंत्र है
मौत का सौदा इस देश के नए सौदागर कर रहे है है,
जनता करो अभी थोड़ा वेट,मंत्रीजी देश को बेच रहे है



वेट जनता लोकतंत्र जी भारत में सो रहे है, 
बोलो जय वोटतंत्र की जय नोटतंत्र की  
                 
                                                                                                आपका नागरिक मित्र
                                                                                                     पंकज मणि


रविवार, दिसंबर 04, 2011

तनहा तनहा

जब भी तुमने किसी भूखे को खाना खिलाया होगा,
मुल्क के हुक्मरानों को मयखाने में पाया होगा 

बुरे वक़्त तुम्हारी तरफ कोई हाथ आया नहीं,
 तुमने भी तो इस शहर को अपनाया नहीं
 
एतबार हो खुद पे तो हरसु मुस्कराना चाहिए,
अगर वसूलो पे आंच आये तो टकराना चाहिए
 
क्या हो कल अगर फिर समझौता करना पड़े,
 जीने के लिए जब घुट-घुट के मरना पड़े
 
मेरी वफादारियों का मुझको कुछ ऐसा सिला मिला,
 राह में पत्थर बिछाने वालों में मेरे घर के लोग थे
 
हुक्मरानों खुदा के लिए अब और एहसां मत करना,
 हमने अब अपने हालातों पे हँसना सिख लिया है
 
आज उलझन में हु कल शायद,मंजिल भी मिल जाये,
मगर तुम्हारे ख्वाहिशों का सफ़र कहीं तुम्हे डूबा न दे
 
एक हम थे जो हर पल खुद को आजमाने वाले थे,
 कुछ लोग तब मेरे सच को झूठ बताने वाले थे
 
चंद तंजो से जो देहल गए वो क्या रंग जमाएँगे,
 मिटने वाले अब तो खुद ब खुद मिट जायेंगे
 
चलो फिर एक चाल खेली जाये,एक नया फितूर लाया जाये,
 महंगाई घटा नहीं सकते,बोलने पर ही पहरा लगाया जाये
 
भला उम्मीद क्या रखे पंकज,मुल्क के हुक्मरानों से,
खुद्गर्जियाँ जब हर किसी का इक-इमान बन जाये
 
कैसा बे-हिसी का दौर हैं पंकज,यहाँ जो भी मिले अजनबी सा लगे,
 अब तो गमे दिल का बतलाना भी,दूसरों को एक मसला सा लगे
 
वो दे रहे है सीख हमें इल्मो तहजीब की
कल जिसे हमने बोलना सिखाया था
 
गर मिले खुदा तो पूछ लेता मैं उनसे,
दौलत दी है तो दिल भी दिया होता
 
कभी लोग मिलते थे सीनों को बढ़ा के
अब कुछ हाथ रुक जाते है बढते बढते
 
ए मेरे दोस्त तेरी एक और मेहरबानी है
टुटा हुआ दिल है बहता हुआ पानी है
 
उनके एहसास जिन्दा है अब तक मेरे गीतों में
एक रोज जिसने हंस के मेरा दमन छोड़ा था
 
मेरे होश में अब आने का इंतज़ार मत करना
बेहोश बैठा हु तू साथ बैठी रहे
 
तेरे अश्कों में अब भी मेरा नाम आता है
मोहब्बत कौन कहता है नाकाम होती है
 
क्या पुछु तुझसे मैं तेरे दिल का हाल
आँखें बता रही है बहुत रोयी रात तुम
 
हम खो चुके है होश तुमको अपनाके
तुम हो की अब तक इम्तेहां ले रहे हो
 
खुशियाँ मिली जो हमें गमो के साथ
तो क्या हम खुशियाँ मनाना छोड़ दे
लेती है हर पल जिंदगी इम्तेहां सबका
मुमकिन नहीं की मुस्कराना छोड़ दे
 
 
 
हुई कुछ रात ज्यादा अब और लिख नहीं सकता
और लिख गया तो शायरी भाग जाएगी
 
 
have fun ,god bless all 
ॐ साईं राम

शनिवार, दिसंबर 03, 2011

मैं और देश की तन्हाई

मेरी गुस्ताख़ियों को माफ़ करना  आज ब्लॉग शुरू कर रहा हूँ,किसी को कभी बुरा लगे तो माफ़ करना ये डिस्क्लैमेर हैं,मेरे दोस्तों मेरी बातों को अपने विराट हृदय से मत लगाना और अपने बुद्धिमानी की पराकास्ठा को बस मानते हुए सोचना जरुर की जब किसी ने कुछ लिख डाला तो अपने  ब्रह्मांड रुपी महान मस्तिष्क को किसी अनाप शनाप बातों पर क्यों व्यर्थ बर्बाद किया जाये जब हमारे कर्णधारों ने इसका प्रयोग नहीं किया तो हम क्यों लोड ले,अब जब कर्णधारों की बात निकली है तो सोचा कुछ अपने तुच्छ मस्तिष्क से कुछ अति अलंकृत शब्दों का स्वाद यहाँ प्रस्तुत करूँ,अजीब परंपरा चल निकली है इस देश में यहाँ नागरिको को इतना सम्मान दिया जाता है की एक साथ सम्पूर्ण नागरिको को महंगाई जैसे अति  उधमशील पुरुस्कार से, कभी कुछ नए नए घोटालों की खुबसूरत व्यंजनों से और कभी हमे कर्णधारो के द्वारपालों से उनके बड़े बेलनो का स्वाद चखाया जाता है,इतना विशाल हृदय है हमारे कर्णधारो का प्रतिवर्ष सब्जबाग दिखाते हैं,और मौका मिलते ही अपनी सब्जी और बाग थोडा छोड़कर बाकि बटोर के चले जाते हैं,हमे लगता है ये बिडम्बना है मगर ये उनके लिए संभावना है आखिर कहते हैं ना कुछ नहीं से कुछ सही,इसी परिपाटी पे चल के हमारे कर्णधार हमे सुपरपॉवर बना देंगे और हम देखते रह जायेंगे,अरे देश तो बहुत आगे निकल गया है पर हम पीछे क्यों छुट गए सब चाय की चुस्कियां लेते हुए बातें करेंगे की इस मसले का हल कैसे निकला जाये तब तक छोटू आके बताएगा की रा-वन तो बहुत महंगी फिल्म है और च्चा मशगुल हो जायेंगे की फिल्मे तो हमारे ज़माने में बनती थी और सुपरपॉवर बनने का सपना वही ख़त्म हो जायेगा? और फिर हमारे कर्णधारों को ये खबर मिल जाएगी की उनकी  सेवक आम जनता बड़े मसलो को भूल चुकी है चिंता की कोई बात नहीं एक और घोटाला कर सकते है,फिर अपनी पूरी इच्छाशक्ति के साथ हमारे कर्णधार कोई नै सम्भावनाये ढूँढने लगेंगे,मसलन क्यों ना पहाड़ों को तोड़कर वहां शौपिंग माल बनाया जाये एक टूरिस्ट प्लेस भी बन  जायेगा,और उस माल को ७५% ऍफ़ डी आइ दे दि जाएँ,विपक्षी हैरान हमारा प्रस्ताव इनके पास कैसे पहुच गया,सब करेंगे विरोध|, ऍफ़ डी आइ  का नहीं,,, इसका की हमे भी कुछ दो मसलन चुपम्म राशी नहीं तो शोर मचाएँगे अकेले आप को लुटने नहीं देंगे सारा कीमती सामान,कई दौर की बैठके होती होंगी और बात न्यूनतम साझा धन राशी पे मानी जाएगी,फिर क्यां पहाड़ टूटना शुरू मगर यहाँ कुछ अति जागरूक नागरिक वर्ग पहुच जायेंगे जो  कहेंगे,पहाड़ तोड़ने नहीं देंगे  चाहे हम टूट जाये,नयी दिक्कत कर्णधार परेशां अब इनका क्या करे जनता इनके साथ है,मगर मस्तिस्क प्रयोगम का उपयोग होगा कुछ बैठको का बुलावा भेजा जायेगा,अति  जागरूक नागरिक पहुचेंगे ,समझाया जायेगा की " इनको नहीं तोडा तो ज्वालामुखी एक दिन इसको अपने आप तोड़ देगा,अति जागरूक नागरिक कहते हैं हमे लगा कुछ पैसों की जोड़ तोड़ की बात होगी मगर ये पहाड़ कहाँ से आ गया,कर्णधारों की मुस्कान महंगाई की तरह बहुत बड़ी हो गयी,अंततः न्यूनतम साझा धन राशी और १ १ दुकानों के प्रस्ताव को माना गया,बाहर  आके सबसे कहा गया,माल से यहाँ की बेरोजगारी ख़त्म होगी प्रत्येक घर से एक को नौकरी दि जाएगी और पहाड़ को नहीं तोडा गया तो फट जायेगा एक दिन ज्वालामुखी से,माल बन गया तो यहाँ जरुर ये जगह न्यू योर्क बन जाएगी",लोग सुहाने ख्वाबों में खो गए,कर्णधारों के रिश्तेदारों के दिन फिर गए,नयी लूट की सम्भावनाये दिखने लगी,श्रीमती कर्नाधारिनो के यहाँ लम्बे तांते लगने लगे ठेकेदारों के,ठेके प्रदान किये गए,सबने मिल बाट के खाने में विश्वास रखा,कर्णधारों को उनका पारिश्रमिक प्राप्त हुआ,बाहर के ऊँची नाक वालों ने अपनी दुकान सजाने का प्रस्ताव भी भेजा,बड़ी दुकाने सबसे बड़े नाक वाले को प्रदान की गयी,चचा ओबामा के वो लंगोटी और अतरंग मित्र थे और उन्होंने कर्णधारो को बड़े गुप्त प्राश्रामिक प्रदान किये थे,माल बनके तैयार था,कुछ नागरिको को नौकरी मिली बाकि बेरोजगारी दर वैसी ही बनी रही लोगों ने आन्दोलन किया मगर उनको कर्णधारों के द्वारपालों के बड़े बेलनो का स्वाद प्रदान किया गया,मसला ख़तम हुआ,चचा को कुछ नहीं मिला मगर उनके नाती को नौकरी मिली तो अगले चुनाव में उन्होंने पुराने कर्णधारो का प्रचार किया,उनके चुनाव प्रत्याशी वही कुछ अति जागरूक नागरिक थे जिन्होंने आन्दोलन किया था,चुनाव परिणाम आये वही जीते उन्होंने माल को तुडवा दिया और वहां एक पार्क बनाने का काम सुरु हुआ फिर से वही पुरानी प्रक्रिया शुरू हुई,अब इनके रिश्तेदारों की बारी थी पह्ले वालो की तरह ये भी नहीं चुके,अब ये जगह इन्दिराबुधवाजपेयी पार्क  के नाम से जानी जाती है सुना है पार्क में आजकल कुछ भैसें  और गायें चरती है,कुत्ते लोटते हैं और ऊँची झाड़ियों के बीच कुछ रूमानियत का एहसास किया जाता है,और मैं एक नागरिक ये महसूस करता हु की यार कल तो क्रिकेट है और अपने देश को और अपने भविष्य को इन कर्नाधारियों के हवाले कर के क्रिकेट का मजा लेता हु,अरे क्रिकेट देश से बड़ा हैं अपना टाइम क्यों बेकार करे इस देश पे सोच के हमने कर्णधार भेजे तो है सोचने के लिए,मगर क्या क्रिकेट देश से बड़ा हो गया है जरा सोचिये,अगर हम नहीं जागेंगे तो आने वाली पीडी जरुर हमारे फोटो पे जूते की माला  लगाएगी,नेता हम में से ही होते हैं अगर हम सुधर जायेंगे तो सब सुधर जायेंगे.
                                                                                              आपका मित्र नागरिक
                                                                                                      पंकज मणि

"हाल दुःख देगा,तो माझी पे नज़र आएगी
जिंदगी हादसा बन-बन के गुजर जाएगी
तुम किसी राह से आवाज़ न देना मुझको
जिंदगी इतने सहारे पे ठहर जाएगी
तेरे चेहरे की उदासी पे हैं दुनिया की नज़र
मेरे हालात पे अब किसकी नज़र जाएगी "
 --------------वसीम बरेलवी