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शनिवार, दिसंबर 03, 2011

मैं और देश की तन्हाई

मेरी गुस्ताख़ियों को माफ़ करना  आज ब्लॉग शुरू कर रहा हूँ,किसी को कभी बुरा लगे तो माफ़ करना ये डिस्क्लैमेर हैं,मेरे दोस्तों मेरी बातों को अपने विराट हृदय से मत लगाना और अपने बुद्धिमानी की पराकास्ठा को बस मानते हुए सोचना जरुर की जब किसी ने कुछ लिख डाला तो अपने  ब्रह्मांड रुपी महान मस्तिष्क को किसी अनाप शनाप बातों पर क्यों व्यर्थ बर्बाद किया जाये जब हमारे कर्णधारों ने इसका प्रयोग नहीं किया तो हम क्यों लोड ले,अब जब कर्णधारों की बात निकली है तो सोचा कुछ अपने तुच्छ मस्तिष्क से कुछ अति अलंकृत शब्दों का स्वाद यहाँ प्रस्तुत करूँ,अजीब परंपरा चल निकली है इस देश में यहाँ नागरिको को इतना सम्मान दिया जाता है की एक साथ सम्पूर्ण नागरिको को महंगाई जैसे अति  उधमशील पुरुस्कार से, कभी कुछ नए नए घोटालों की खुबसूरत व्यंजनों से और कभी हमे कर्णधारो के द्वारपालों से उनके बड़े बेलनो का स्वाद चखाया जाता है,इतना विशाल हृदय है हमारे कर्णधारो का प्रतिवर्ष सब्जबाग दिखाते हैं,और मौका मिलते ही अपनी सब्जी और बाग थोडा छोड़कर बाकि बटोर के चले जाते हैं,हमे लगता है ये बिडम्बना है मगर ये उनके लिए संभावना है आखिर कहते हैं ना कुछ नहीं से कुछ सही,इसी परिपाटी पे चल के हमारे कर्णधार हमे सुपरपॉवर बना देंगे और हम देखते रह जायेंगे,अरे देश तो बहुत आगे निकल गया है पर हम पीछे क्यों छुट गए सब चाय की चुस्कियां लेते हुए बातें करेंगे की इस मसले का हल कैसे निकला जाये तब तक छोटू आके बताएगा की रा-वन तो बहुत महंगी फिल्म है और च्चा मशगुल हो जायेंगे की फिल्मे तो हमारे ज़माने में बनती थी और सुपरपॉवर बनने का सपना वही ख़त्म हो जायेगा? और फिर हमारे कर्णधारों को ये खबर मिल जाएगी की उनकी  सेवक आम जनता बड़े मसलो को भूल चुकी है चिंता की कोई बात नहीं एक और घोटाला कर सकते है,फिर अपनी पूरी इच्छाशक्ति के साथ हमारे कर्णधार कोई नै सम्भावनाये ढूँढने लगेंगे,मसलन क्यों ना पहाड़ों को तोड़कर वहां शौपिंग माल बनाया जाये एक टूरिस्ट प्लेस भी बन  जायेगा,और उस माल को ७५% ऍफ़ डी आइ दे दि जाएँ,विपक्षी हैरान हमारा प्रस्ताव इनके पास कैसे पहुच गया,सब करेंगे विरोध|, ऍफ़ डी आइ  का नहीं,,, इसका की हमे भी कुछ दो मसलन चुपम्म राशी नहीं तो शोर मचाएँगे अकेले आप को लुटने नहीं देंगे सारा कीमती सामान,कई दौर की बैठके होती होंगी और बात न्यूनतम साझा धन राशी पे मानी जाएगी,फिर क्यां पहाड़ टूटना शुरू मगर यहाँ कुछ अति जागरूक नागरिक वर्ग पहुच जायेंगे जो  कहेंगे,पहाड़ तोड़ने नहीं देंगे  चाहे हम टूट जाये,नयी दिक्कत कर्णधार परेशां अब इनका क्या करे जनता इनके साथ है,मगर मस्तिस्क प्रयोगम का उपयोग होगा कुछ बैठको का बुलावा भेजा जायेगा,अति  जागरूक नागरिक पहुचेंगे ,समझाया जायेगा की " इनको नहीं तोडा तो ज्वालामुखी एक दिन इसको अपने आप तोड़ देगा,अति जागरूक नागरिक कहते हैं हमे लगा कुछ पैसों की जोड़ तोड़ की बात होगी मगर ये पहाड़ कहाँ से आ गया,कर्णधारों की मुस्कान महंगाई की तरह बहुत बड़ी हो गयी,अंततः न्यूनतम साझा धन राशी और १ १ दुकानों के प्रस्ताव को माना गया,बाहर  आके सबसे कहा गया,माल से यहाँ की बेरोजगारी ख़त्म होगी प्रत्येक घर से एक को नौकरी दि जाएगी और पहाड़ को नहीं तोडा गया तो फट जायेगा एक दिन ज्वालामुखी से,माल बन गया तो यहाँ जरुर ये जगह न्यू योर्क बन जाएगी",लोग सुहाने ख्वाबों में खो गए,कर्णधारों के रिश्तेदारों के दिन फिर गए,नयी लूट की सम्भावनाये दिखने लगी,श्रीमती कर्नाधारिनो के यहाँ लम्बे तांते लगने लगे ठेकेदारों के,ठेके प्रदान किये गए,सबने मिल बाट के खाने में विश्वास रखा,कर्णधारों को उनका पारिश्रमिक प्राप्त हुआ,बाहर के ऊँची नाक वालों ने अपनी दुकान सजाने का प्रस्ताव भी भेजा,बड़ी दुकाने सबसे बड़े नाक वाले को प्रदान की गयी,चचा ओबामा के वो लंगोटी और अतरंग मित्र थे और उन्होंने कर्णधारो को बड़े गुप्त प्राश्रामिक प्रदान किये थे,माल बनके तैयार था,कुछ नागरिको को नौकरी मिली बाकि बेरोजगारी दर वैसी ही बनी रही लोगों ने आन्दोलन किया मगर उनको कर्णधारों के द्वारपालों के बड़े बेलनो का स्वाद प्रदान किया गया,मसला ख़तम हुआ,चचा को कुछ नहीं मिला मगर उनके नाती को नौकरी मिली तो अगले चुनाव में उन्होंने पुराने कर्णधारो का प्रचार किया,उनके चुनाव प्रत्याशी वही कुछ अति जागरूक नागरिक थे जिन्होंने आन्दोलन किया था,चुनाव परिणाम आये वही जीते उन्होंने माल को तुडवा दिया और वहां एक पार्क बनाने का काम सुरु हुआ फिर से वही पुरानी प्रक्रिया शुरू हुई,अब इनके रिश्तेदारों की बारी थी पह्ले वालो की तरह ये भी नहीं चुके,अब ये जगह इन्दिराबुधवाजपेयी पार्क  के नाम से जानी जाती है सुना है पार्क में आजकल कुछ भैसें  और गायें चरती है,कुत्ते लोटते हैं और ऊँची झाड़ियों के बीच कुछ रूमानियत का एहसास किया जाता है,और मैं एक नागरिक ये महसूस करता हु की यार कल तो क्रिकेट है और अपने देश को और अपने भविष्य को इन कर्नाधारियों के हवाले कर के क्रिकेट का मजा लेता हु,अरे क्रिकेट देश से बड़ा हैं अपना टाइम क्यों बेकार करे इस देश पे सोच के हमने कर्णधार भेजे तो है सोचने के लिए,मगर क्या क्रिकेट देश से बड़ा हो गया है जरा सोचिये,अगर हम नहीं जागेंगे तो आने वाली पीडी जरुर हमारे फोटो पे जूते की माला  लगाएगी,नेता हम में से ही होते हैं अगर हम सुधर जायेंगे तो सब सुधर जायेंगे.
                                                                                              आपका मित्र नागरिक
                                                                                                      पंकज मणि

"हाल दुःख देगा,तो माझी पे नज़र आएगी
जिंदगी हादसा बन-बन के गुजर जाएगी
तुम किसी राह से आवाज़ न देना मुझको
जिंदगी इतने सहारे पे ठहर जाएगी
तेरे चेहरे की उदासी पे हैं दुनिया की नज़र
मेरे हालात पे अब किसकी नज़र जाएगी "
 --------------वसीम बरेलवी
 

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