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शुक्रवार, दिसंबर 30, 2011

कुछ दिल से

अभी जौंके-सफ़र का मज़ा आने दे,मनाज़िल दो कदम और चला जा

ये रात अँधेरे की चादर ओड़ के सो गयी,एक सुबह की तमन्ना  मुझे सोने नहीं देती

हसरते की बस कुछ और जी ले ,अब  खुल के जीने नहीं देती 

जी इस तरह की खुद को मोहतरम कर दे,शराफतो पे किसी का एकअख्तियार नहीं होता

पंकज वो जो चला गया तो अफ़सोस मत कर,किसी एक  के रुक जाने से वक़्त नहीं रुका करता

हरेक लफ्ज़ है मेरे जेहन का आइना,उनको अब भी शौक है इम्तेहान का

तेरी हर एक कोशिश तुझे इंसा बनाएगी,मुक़द्दर को भी तेरा इंतज़ार रहेगा

मुसाफ़िर-ए-तनहा को जौंके-सफ़र का अंदाज़ा है,उसे अब किसी हमजबां की जरुरत नहीं

जलजलों का ये दोस्त खौफ  मत रख,आंधियों ने लड़ना सिखा दिया मुझे

निगाहबानों ने दामन मैला कर लिया,शर्त लगी है कहीं खंडहर बनाने की

बड़ी हवेलियों में जो उनकी  तरबियत न होती,तो दिल में उनके मस्लहत न  होती

गमनसीबों पे तंज कर रहे हो मियां,गर्दिशे-शाम कभी ढूढेगी तुम्हारा भी पता