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रविवार, दिसंबर 04, 2011

तनहा तनहा

जब भी तुमने किसी भूखे को खाना खिलाया होगा,
मुल्क के हुक्मरानों को मयखाने में पाया होगा 

बुरे वक़्त तुम्हारी तरफ कोई हाथ आया नहीं,
 तुमने भी तो इस शहर को अपनाया नहीं
 
एतबार हो खुद पे तो हरसु मुस्कराना चाहिए,
अगर वसूलो पे आंच आये तो टकराना चाहिए
 
क्या हो कल अगर फिर समझौता करना पड़े,
 जीने के लिए जब घुट-घुट के मरना पड़े
 
मेरी वफादारियों का मुझको कुछ ऐसा सिला मिला,
 राह में पत्थर बिछाने वालों में मेरे घर के लोग थे
 
हुक्मरानों खुदा के लिए अब और एहसां मत करना,
 हमने अब अपने हालातों पे हँसना सिख लिया है
 
आज उलझन में हु कल शायद,मंजिल भी मिल जाये,
मगर तुम्हारे ख्वाहिशों का सफ़र कहीं तुम्हे डूबा न दे
 
एक हम थे जो हर पल खुद को आजमाने वाले थे,
 कुछ लोग तब मेरे सच को झूठ बताने वाले थे
 
चंद तंजो से जो देहल गए वो क्या रंग जमाएँगे,
 मिटने वाले अब तो खुद ब खुद मिट जायेंगे
 
चलो फिर एक चाल खेली जाये,एक नया फितूर लाया जाये,
 महंगाई घटा नहीं सकते,बोलने पर ही पहरा लगाया जाये
 
भला उम्मीद क्या रखे पंकज,मुल्क के हुक्मरानों से,
खुद्गर्जियाँ जब हर किसी का इक-इमान बन जाये
 
कैसा बे-हिसी का दौर हैं पंकज,यहाँ जो भी मिले अजनबी सा लगे,
 अब तो गमे दिल का बतलाना भी,दूसरों को एक मसला सा लगे
 
वो दे रहे है सीख हमें इल्मो तहजीब की
कल जिसे हमने बोलना सिखाया था
 
गर मिले खुदा तो पूछ लेता मैं उनसे,
दौलत दी है तो दिल भी दिया होता
 
कभी लोग मिलते थे सीनों को बढ़ा के
अब कुछ हाथ रुक जाते है बढते बढते
 
ए मेरे दोस्त तेरी एक और मेहरबानी है
टुटा हुआ दिल है बहता हुआ पानी है
 
उनके एहसास जिन्दा है अब तक मेरे गीतों में
एक रोज जिसने हंस के मेरा दमन छोड़ा था
 
मेरे होश में अब आने का इंतज़ार मत करना
बेहोश बैठा हु तू साथ बैठी रहे
 
तेरे अश्कों में अब भी मेरा नाम आता है
मोहब्बत कौन कहता है नाकाम होती है
 
क्या पुछु तुझसे मैं तेरे दिल का हाल
आँखें बता रही है बहुत रोयी रात तुम
 
हम खो चुके है होश तुमको अपनाके
तुम हो की अब तक इम्तेहां ले रहे हो
 
खुशियाँ मिली जो हमें गमो के साथ
तो क्या हम खुशियाँ मनाना छोड़ दे
लेती है हर पल जिंदगी इम्तेहां सबका
मुमकिन नहीं की मुस्कराना छोड़ दे
 
 
 
हुई कुछ रात ज्यादा अब और लिख नहीं सकता
और लिख गया तो शायरी भाग जाएगी
 
 
have fun ,god bless all 
ॐ साईं राम